One Liners

Take it with a grain of salt....

Sunday, January 19, 2014

तस्वीर दगा नहीं देती है !

आज गुफ्तगू  की शाम ढली ,कुछ उम्मीद हवा होती है !
लफ्जों के उलझ जाने से ,कुछ पहेलियाँ सुलझ होनी है !

मेरे तेरे सवालों से , तेरा मेरा कुछ तय होंना  है !
कुछ खटास होनी है, कुछ तीखा तैयार होना है !

तेरे हाँ-ना-ठीक है जवाबों से , नमकीन दाल ही रोज़ होती है !
तेरे दो लफ़्ज़ों से बहुत ज्यादा , तेरी तस्वीर  से बात होती है !

मेरे पूछे सवालों  के, बिनकहे  अधूरे जवाब देती है!
तेरी नखरीली अदाए खूब सही, तेरी तस्वीर जवाब देती है !

इंतज़ार करते जवाबों के हम , तू चैन से जाकर सोती है !
वफ़ा की उम्मीद करे न क्यूँ , तेरी तस्वीर दगा नहीं देती है 

कुछ बात कहें तो क्या कहें !

कुछ जज़्बात उठें  तो कैसे उठें ,
कुछ रिश्ता रखें तो क्या कहें !
कुछ बात  कहें तो  कैसे कहें ,
कुछ  बात कहें तो क्या कहें !

कुछ तिल तिल  बेसब्री  बेसब्र उठें ,
कुछ तिल  तिल हताशा हताश उठें !
हर लम्हें मजबूरी मजबूर  उठें ,
पर कुछ  बात कहें तो क्या कहें !

यह विरह  नहीं , फिर क्यूँ विरहन  लगे ,
ना यह प्रेम व्यव्हार  सा मिलाप लगे !
दूर दूर से लगे की हम पास रहें ,

पर कुछ  बात कहें तो क्या कहें !