चर्चा उठा आज फिर से , तेरे इन मासूम खिलाफत्गारों में .. तेरे मेरे बीच क्या अफसाना , हवा कहाँ अनजान उल्फत्गारों में ... उफ़ तो निकल ही जाती है चीर के , तुझे कहे कटु संवादों में ... एक रिश्ता ऐसा भी दम लेता है ,आधे अधूरे नजराए वादों में ... खेली उन अनजाने पहचानो ने सियासत , उड़ाई तेरी बेफिक्री नियत की खबरे हवाओं में ... खबर ना दी हमने भी उन् बेत्व्जूफों को , माँगा था तुम जैसा ही ख्वाबों में ... पाना ,चाहना ,सोचना ,छूना; जान लिया मैंने नहीं कुछ इन तुच्छ बातों में ... बेकरारी से जानना चाहता हूँ बस अब तो ,जिन्दा हूँ अब सोच कर यही रातों में ... मोहताज नहीं हमारी मंजील - ए- मोहब्बत ,किसी ख्वाइश्मन्द की बर्बाद तलाब्गारी में .. पहुंचेंगे हम भी उस मंज़र पर ,डूब के दरिया - ए - आग की तेरी मेरी स्नेह की यारी में .. सियासतदर ,दोस्त ,शुभचिंतक खड़े हैं सब , चुटकी भरे मज़े लेने दिलाने में ... कब तक साथ देंगे यह तेरा मेरा ,क्या मुश्किलें कम है खुद की ज़माने में ... चर्चा उठा आज फिर से , तेरे इन मासूम खिलाफत्गारों में .. उफ़ तो निकल ही जाती है चीर के , तुझे कहे कटु संवादों में ...
Thursday, July 14, 2011
संवाद उन खिलाफत्गारों का...
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