आज गुफ्तगू की शाम ढली ,कुछ उम्मीद हवा होती है !
लफ्जों के उलझ जाने से ,कुछ पहेलियाँ सुलझ होनी है !
मेरे तेरे सवालों से , तेरा मेरा कुछ तय होंना है !
कुछ खटास होनी है, कुछ तीखा तैयार होना है !
तेरे हाँ-ना-ठीक है जवाबों से , नमकीन दाल ही रोज़ होती है !
तेरे दो लफ़्ज़ों से बहुत ज्यादा , तेरी तस्वीर से बात होती है !
मेरे पूछे सवालों के, बिनकहे अधूरे जवाब देती है!
तेरी नखरीली अदाए खूब सही, तेरी तस्वीर जवाब देती है !
इंतज़ार करते जवाबों के हम , तू चैन से जाकर सोती है !
वफ़ा की उम्मीद करे न क्यूँ , तेरी तस्वीर दगा नहीं देती है