छट गयी है बदली आज, एक धुप उमड़ उमड़ आई है.. फिर वही आगाज़ है,फिर वही तम्मानाएं अचेत होश में आई है! हसरत को उसने एक दिल्लगी बनायीं , छलावा हसीन वही पुराना है.. उफ़ का राही बनाकर आज़माइश करते रहिये , क़यामत तक बस यही एक दीवाना है! खून तेरे हाथों इतने की ,अब नए पुराने सारे माफ़ हैं... आशिकों के ढेर को, इस ज़माने को कंधे पर उठाना होगा! एक मेरा भी क़त्ल कर दो, कफ़न यह जज्बात मांगते हैं .... करम कर दो इतना,तेरे छलावे की टीस में रोज़ मरना अब गवारा न होगा !
Friday, August 19, 2011
छलावे की टीस
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